thoso ke yantrik gun :-
ठोस :-
वें पिण्ड जिनकी आकृति , आकार तथा आयतन निश्चित होते है , ठोस कहलाते है
ठोस पिण्ड का अर्थ यह नही है कि पिण्ड पूर्ण रूप से दृढ ही हों |
विरुपक बल :-
किसी ठोस पिण्ड की आकृति व आकार में परिवर्तन करने के लिए उस पर बाहय बल लगाने की आवश्यकता होती है , यह बल विरुपक बल कहलाता है
प्रत्यास्थता :-
वे वस्तुएँ जो विरूपक बल को हटा लेने पर अपनी पूर्व अवस्था में लौट आती है अथवा अपनी प्रारम्भिक आकृति व आयतन को पुन: प्राप्त कर लेती है प्रत्यास्थ वस्तुएँ कहलाती है तथा इनका यह गुण प्रत्यास्थता कहलाता है तथा वस्तुओं में उत्पन्न यह विरूपण प्रत्यास्थ विरूपण कहलाता है
अप्रत्यास्थता :-
जब किसी पिण्ड पर बाहय बल लगते है तो पिण्ड की आकृति अथवा आकार में परिवर्तन आ जाता है |
यदि पिण्ड में अपनी आकृति तथा आकार को पुन: प्राप्त करने की प्रवृति नही होती है तो यह पिण्ड अप्रत्यास्थ पिण्ड कहलाता है तथा इसके पदार्थ का यह गुण अप्रत्यास्थता कहलाता है
ऐसी वस्तुओं को प्लास्टिक तथा इनके पदार्थ के इस गुण को प्लास्टिक तथा इनके पदार्थ के इस गुण को प्लास्टिकता भी कहतें है |
उदाहरण : गीली मिट्टी |
ठोसो का प्रत्यास्थ व्यवहार
1. हम जानते है कि किसी ठोस में प्रत्येक परमाणु अथवा अणु अपने पड़ोसी परमाणु अथवा अणु से घिरा हुआ होता है
2. यह अणु अथवा परमाणु अन्तरापरमाण्विक बलों से बंधे हुए होते है और एक स्थिर साम्यवस्था में बने रहते है
3. जब किसी ठोस पिण्ड के ऊपर विरूपक बल लगाया जाता है तो उसके परमाणु अथवा अणु अपनी साम्यावस्था से विस्थापित हो जाते है जिससे उनकी अन्तरापरमाण्विक दूरी में अंतर आ जाता है
4. जब विरुपक बल हटा लिया जाता है तो अन्तरापरमाण्विक बल उन्हें अपनी प्रारम्भिक स्थिति में ले जाते है इस प्रकार ठोस पिण्ड अपनी प्रारम्भिक आकृति व आकार को पुन: प्राप्त कर लेता है
ठोसो के प्रत्यास्थ व्यवहार को स्प्रिंग गेंद मॉडल के आधार पर सरलता से समझाया जा सकता है इस मॉडल में गेंद परमाणुओं को तथा स्प्रिंग अन्तरापरमाण्विक बलों को व्यक्त करती है
जब किसी गेंद को साम्यावस्था से विस्थापित किया जाता है तो स्प्रिंग गेंद को अपनी पूर्व अवस्था में लाने का प्रयास करेगा
इस प्रकार ठोसों के प्रत्यास्थ व्यवहार को समझाया जा सकता है
प्रतिबल :-
जब किसी पिण्ड पर एक बल लगाया जाता है तो उसमें थोडा - सा अधिक विरूपण (विकृति) उत्पन्न हो जाती है जो पिण्ड के पदार्थ की प्रकृति तथा विरूपक बल
के मान पर निर्भर करती है जब किसी पिण्ड पर विरूपक बल लगाया जाता है तो उसमें एक प्रत्यानयन बल उत्पन्न हो जाता है | इस प्रत्यानयन बल का परिमाण आरोपित बल के मान के बराबर तथा विपरीत
दिशा में होता है | किसी पदार्थ के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाला प्रत्यानयन बल को ही प्रतिबल कहते है
माना किसी पिण्ड के क्षेत्रफल A वाले किसी अनुप्रस्थ काट की लम्बवत दिशा में लगाये गये बल का मान F हो तो -
प्रत्यानयन बल = F / A
मात्रक = न्यूटन / m2
विमा = [M1L-1T-2]
प्रतिबल के प्रकार :-
तनन प्रतिबल :-
जब किसी बेलनाकार छड के ऊपर उसकी अनुप्रस्थ काट की लम्बवत दिशा में बल लगाकर खींचा जाता है तो इस स्थिति में एकांक क्षेत्रफल पर प्रत्यानयन बल को तनन प्रतिबल कहते है
संपीडन प्रतिबल :-
जब किसी वस्तु पर बाहय बल लगाकर उसे संपीडित किया जाए तो इस स्थिति में एकांक क्षेत्रफल पर प्रत्यानयन बल को संपीडन प्रतिबल कहते है
तनन तथा संपीडन प्रतिबल को अनुदेधर्य प्रतिबल भी कहा जाता है
विकृति :-
जब किसी वस्तु पर विरूपक बल लगाया जाता है तो वस्तु की आकृति अथवा आकार में परिवर्तन आ जाता है
वस्तु की यह अवस्था विकृत अवस्था कहलाती है | विरूपक बल के कारण किसी वस्तु की आकृति अथवा आकार में आने वाले भिन्नात्मक परिवर्तन को विकृति कहते है |
विकृति तीन प्रकार की होती है -
1. अनुदैधर्य विकृति
2. आयतन विकृति
3. अपरूपण विकृति
1. अनुदैधर्य विकृति :-
जब किसी वस्तु पर लगाये गये विरूपण बल के कारण वस्तु की लम्बाई में परिवर्तन आ जाता है तो उसमें उत्पन्न विकृति अनुदैधर्य विकृति कहलाती है
अर्थात् किसी वस्तु के प्रति एकांक लम्बाई में आने वाले परिवर्तन को अनुदैधर्य विकृति कहते है
2. आयतन विकृति :-
यदि विरूपक बल के कारण किसी वस्तु के आयतन में परिवर्तन आता है तो उसमें उत्पन्न विकृति आयतन विकृति कहलाती है
अर्थात् किसी वस्तु के प्रति एकांक आयतन में आने वाले परिवर्तन को आयतन विकृति कहते है
3. अपरूपण विकृति :-
जब किसी वस्तु के ऊपर स्पर्श रेखीय विरूपक बल लगाया जाता है तो वस्तु की आकृति अथवा आकार में उत्पन्न यह विकृति अपरूपण विकृति कहलाती है
स्पर्श रेखीय विरूपक बल के कारण दृढ आधार के लम्बवत रेखाओ द्वारा घुमा गया कोण अपरूपण विकृति कहलाता है | इसे θ से व्यक्त करते है
△ABB' में
यदि θ का मान छोटा हो तो
tanθ ≈ θ
हुक का नियम :-
प्रत्यास्थता की सीमा में प्रतिबल विकृति के समानुपाती होता है
अर्थात् प्रतिबल ∝ विकृति
या प्रतिबल = E x विकृति
अर्थात् प्रत्यास्थता गुणांक प्रतिबल तथा विकृति के अनुपात के बराबर होता है
प्रत्यास्थता गुणांक का मात्रक :-
चूँकि विकृति मात्रक हीन राशि है अत: प्रत्यास्थता गुणांक (E) का मात्रक प्रतिबल
के मात्रक के बराबर होता है
Note :- 1. यदि वस्तु में उत्पन्न विकृति अनुदैधर्य है तो प्रत्यास्थता गुणांक यंग प्रत्यास्थता गुणांक कहलाएगा |
2. यदि विकृति आयतनात्मक हो तब प्रत्यास्थता गुणांक आयतन प्रत्यास्थता गुणांक कहलाएगा
3. यदि उत्पन्न विकृति अपरूपण विकृति है तो प्रत्यास्थता गुणांक दृढता गुणांक कहलाएगा
प्रतिबल विकृति वक्र :-
जब किसी वस्तु पर विरूपक बल लगाया जाता है तो उसकी आकृति व आकार में परिवर्तन
आ जाता है प्रत्यास्थता की सीमा में प्रतिबल विकृति के समानुपाती होता है
यदि प्रतिबल तथा विकृति के मध्य ग्राफ खींचे तो वह उपरोक्त ग्राफ की भांति प्राप्त होता है
1. ग्राफ का O से A तक का भाग रैखिक है इस क्षेत्र में हुक के नियम का पालन होता है अर्थात् जब वस्तु पर आरोपित बल को हटा लिया जाता है तो वह अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त कर लेती है | इस क्षेत्र में ठोस एक प्रत्यास्थ पिंड की भांति आचरण करता है
2. A से B के क्षेत्र में प्रतिबल विकृति के समानुपाती नहीं होता है परंतु भार हटा लेने पर पिंड अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त कर लेता है ग्राफ का बिंदु B प्रत्यास्थ सीमा (पराभव बिंदु ) कहलाता है और इसके संगत प्रतिबल को पदार्थ का पराभव सामर्थ्य अथवा प्रत्यास्थ सामर्थ्य कहते हैं |
3. यदि भार को और अधिक बढ़ा दिया जाए तो उत्पन्न प्रतिबल पराभव सामर्थ्य से अधिक हो जाता है इस स्थिति में प्रतिबल का मान थोड़ा सा बढ़ने पर विकृति का मान बहुत तेजी से बढ़ता है ग्राफ में B और D के बीच का भाग यह दर्शाता है कि B और D के मध्य किसी बिंदु C पर जब भार को हटा लिया जाता है तो पिंड अपनी अवस्था को पुन: प्राप्त नहीं करता है इस स्थिति में जब प्रतिबंध शून्य हो जाए तब भी विकृति सुनने नहीं होती है
अर्थात पिंड की लंबाई में स्थाई वृद्धि हो जाती है ग्राफ में बिंदु D को चरमतनन सामर्थ्य कहते हैं
इस बिंदु के आगे यदि आरोपित बल को हटा लिया जाए तब भी विकृति उत्पन्न होती है तथा बिंदु E पर पदार्थ टूट जाता है
यंग प्रत्यास्थता गुणांक :-
तनन प्रतिबल तथा अनुदैधर्य विकृति के अनुपात को यंग प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं इसे "γ" से व्यक्त करते हैं |
यदि पिंड बेलनाकार आकृति का है तब A = πr2
चूँकि F = mg
विमा = [M1L-1T-2]
किसी तार के द्रव्य के यंग गुणांक का मापन :-
1. तनाव के अंतर्गत किसी तार के द्रव्य के यंग गुणांक का मापन करने के लिए प्रायोगिक व्यवस्था को चित्र में दर्शाया है
2. इसमें दो सीधे लंबे तार जिनकी लंबाई तथा त्रिज्या बराबर हो , किसी दृढ़ आधार से एक दूसरे के अगल-बगल लटके हुए हैं तार A संदर्भ तार कहलाता है
जिससे मि.मी. पैमाने का एक मुख्य स्केल तथा भार रखने के लिए एक पलड़ा लगा होता है
3. तार B प्रायोगिक तार कहलाता है
जिससे वर्नियर पैमाने का संकेतक तथा एक पलड़ा जुड़ा होता है
4. तार A से जुड़े पलड़े पर भार रखते हैं पलडे पर रखा भार नीचे की ओर बल लगाता है , तार A सीधा हो जाता है
तथा इसके पश्चात प्रायोगिक तार पर भार रखते हैं तथा तार की लंबाई में होने वाले परिवर्तन को नोट करते जाते हैं
माना प्रायोगिक तार की प्रारंभिक लंबाई l व त्रिज्या r है
तब -
तार की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल = πr2
माना तार पर m द्रव्यमान का कोई पिंड रखने पर उसकी लम्बाई मे △L का विस्तार हो जाता है
इस प्रकार m द्रव्यमान के पिंड द्वारा प्रायोगिक तार पर आरोपित बल = mg
चूँकि F = mg
2. अपरूपण गुणांक
अपरूपण प्रतिबल तथा अपरूपण विकृति के अनुपात को अपरूपण गुणांक कहते हैं इसे दृढ़ता गुणांक भी कहते हैं इससे G से व्यक्त करते हैं इसे दृढ़ता गुणांक भी कहते हैं |
अपरूपण प्रतिबल को σs से व्यक्त कर सकते हैं
अपरूपण गुणांक का SI पद्धति में मात्रक N/m2 होता है इसका एक अन्य मात्रक पास्कल भी होता है अपरूपण गुणांक का मात्रक यंग प्रत्यास्थता गुणांक के मात्रक से कम होता है यह द्रव के लिए यंग प्रत्यास्थता गुणांक का एक तिहाई होता है
3. आयतन प्रत्यास्थता गुणांक :-
जब किसी पिण्ड को द्रव में डूबोया जाता है तो वह जलीय प्रतिबल के अंतर्गत चला जाता है
यह पिण्ड के आयतन में कमी उत्पन्न करता है
जलीय प्रतिबल तथा संगत आयतन विकृति के अनुपात को आयतन गुणांक कहते हैं इससे B से व्यक्त करते हैं
यहां ऋणात्मक चिन्ह आयतन में होने वाली कमी को व्यक्त करता है आयतन गुणांक का SI पद्धति में मात्रक दाब के मात्रक के बराबर अर्थात् N/m2 या पास्कल होता है
संपीड्यता :-
आयतन गुणांक के व्युत्क्रम को संपीड्यता कहते हैं इससे K से व्यक्त करते हैं इसे दाब में एकांक वृद्धि पर आयतन में उत्पन्न भिन्नात्मक परिवर्तन के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जा सकता है
Note 1. यह देखा गया है कि ठोसों के आयतन गुणांक द्रवों से कई अधिक होते हैं तथा द्रवों के लिए इसका मान गैसों से कई अधिक होता है
2. ठोस पदार्थ सबसे कम संपीड्य होते हैं
जबकि गैसे अधिक संपीड्य होती है
3. गैसों की संपीड्य सबसे अधिक होती है जो ताप एवं दाब के साथ बदलती है
4. ठोसो की असंपीड्यता मुख्यतः आसपास के अणुओं के बीच दृढ युग्मन के कारण होती है
5. द्रवों के अणु भी अपने पास के अणुओं से बंधे रहते हैं लेकिन उतनी मजबूती से नहीं जितने ठोसों में अणु बने रहते हैं
6. गैस के अणुओं में युग्मन बहुत कम होता है
द्रवों के प्रत्यास्थ व्यवहार के अनुप्रयोग :-
दैनिक जीवन में द्रव्यों के प्रत्यास्थ व्यवहार की अहम भूमिका है
उदाहरण के लिए - किसी भवन का डिजाइन करते समय स्तंभो, दण्डो तथा आधारों की संरचनात्मक डिजाइन के लिए प्रयुक्त द्रव्यों की प्रबलता का ज्ञान होना आवश्यक है
पुल इत्यादि का निर्माण करते समय उसमें प्रयुक्त भीम का अनुप्रस्थ परिच्छेद आई(I) की आकृति का होता है
एक पहाड़ी की आकृति पिरामिड की आकृति की होती है इसका कारण अभियांत्रिकी के अध्ययन से पाया जाता है
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✻ ठोसों के यांत्रिक गुण (Mechanical Properties Of Solid) PDF Download
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