ठोसो में अपूर्णताएं | PDF Download |

 ठोसो में अपूर्णताएं PDF Download

किसी क्रिस्टल में अवयवी कण जालक बिंदुओं में उपस्थित रहते हैं
अतः किसी आदर्श क्रिस्टल के अवयवी कणों की व्यवस्था में उत्पन्न विचलन या अपूर्णताएं बिंदु दोष कहलाती है ।
बिंदु दोष तीन प्रकार का होता है -
(A) स्टाइकियोमीट्रिक दोष ( आंतर दोष )
(B) अशुद्ध दोष
(C) नॉन स्टाइकियोमीट्रिक दोष

(A) स्टाइकियोमीट्रिक दोष ( आंतर दोष/ऊष्मा गतिकी दोष ) :

वें बिंदु दोष जिनकी स्टाइकियोमीट्रिक परिवर्तित नहीं होती अर्थात् दोषपूर्ण क्रिस्टल में अवयवी कणों का अनुपात शुद्ध क्रिस्टल के समान होता है
इसके निम्न भाग हैं -

1. रिक्तिका दोष :-

जब किसी क्रिस्टल के जालक बिंदुओ से अवयवी कण निष्कासित हो जाते हैं तो जालक बिंदु रिक्त हो जाते हैं अर्थात् रिक्तिका बन जाती है ।
इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व में कमी हो जाती है ।


रिक्तिका दोष

2. अंतराकाशी दोष :-

किसी क्रिस्टल जालक के बनते समय अतिरिक्त अवयवी कण अंतराकाशी छिद्रों में प्रवेश कर जाते हैं इसलिए इसे अंतराकाशी दोष कहते हैं इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व में वृद्धि हो जाती है ।

अंतराकाशी दोष

आयनिक क्रिस्टलों के दोष : -

1. शॉटकी दोष : -

यह एक प्रकार से रिक्तिका दोष है इस दोष को सर्वप्रथम शॉटकी वैज्ञानिक ने देखा ।
यह दोष उन क्रिस्टलो में पाया जाता है जिनके धनायन व ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं ।
इस दोष में एक धनायन अपने जालक बिंदु को छोड़कर क्रिस्टल से बाहर निकल जाता है तो उदासीनता बनाए रखने के लिए एक ऋणायन भी निष्कासित हो जाता है ।
शॉटकी दोष के कारण आयनिक क्रिस्टलो के घनत्व में कमी हो जाती है ।
Example :- Nacl , Kcl , Cscl , AgBr


शॉटकी दोष

2. फ्रेंकल दोष ( विस्थापन दोष ) : -

यह एक प्रकार से अंतराकाशी दोष है इसे सर्वप्रथम फ्रेंकल नामक वैज्ञानिक ने देखा ।
यह दोष उन क्रिस्टलो में पाया जाता है जिनके धनायनो का आकार ऋणायनो की अपेक्षा बहुत छोटा होता है ।
इस दोष में धनायन अपने जालक बिंदु से निकलकर अंतराकाशी छिद्र में प्रवेश कर जाता है जिससे इसकी उदासीनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व में कोई परिवर्तन नहीं होता है ।
Example :- AgCl , AgBr , AgI , ZnS
यह दोष AgBr में Ag+ आयन के विस्थापन से उत्पन्न होता है ।
Note : AgBr के क्रिस्टल में शॉटकी एवं फ्रेंकल दोनों प्रकार के दोष पाए जाते हैं ।

फ्रेंकल दोष ( विस्थापन दोष )

(B) अशुद्धता दोष : -

किसी आयनिक क्रिस्टल की चालकता बढ़ाने के लिए इसमें अन्य पदार्थों की अशुद्धि मिला दी जाती है इस प्रक्रिया को डॉपिंग ( अपमिश्रण ) कहते हैं तथा अशुद्धियां मिलाने के इस दोष को अशुद्धता दोष कहते हैं ।
Example :- NaCl के क्रिस्टल के बनते समय उसमें SrCl2 की अशुद्धि मिला दी जाए तो क्रिस्टल में एक Sr+2 दो Na+ आयनो को प्रतिस्थापित कर देता है जिससे क्रिस्टल में रिक्ति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण क्रिस्टल की चालकता बढ़ जाती है ।
AgCl में CdCl2 की अशुद्धियां पाई जाती है ।

अशुद्धता दोष

(C) नॉन स्टाइकियोमीट्रिक दोष :-

वे बिंदु दोष जिनकी स्टाइकियोमीट्रिक परिवर्तित हो जाती है

1. धातु आधिक्य दोष :

1. ऋण आयन की कमी :-

किसी आयनिक क्रिस्टल से एक ऋण आयन का निष्कासन हो जाता है तो उस स्थान पर इलेक्ट्रॉन प्रवेश कर जाता है । इस अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त जालक बिंदु को F - केंद्र कहते हैं । जिसे लैटिन शब्द फैरवे से लिया गया है । फैरवे का अर्थ रंग प्रदर्शित करना होता है ।
इसी कारण NaCl का क्रिस्टल पीला दिखाई देता है या NaCl के क्रिस्टल को सोडियम वाष्प के साथ गर्म करते हैं तो Cl- का निष्कासन हो जाता है तथा उसके स्थान पर Na से एक इलेक्ट्रॉन प्रवेश कर जाता है ।
KCl - बैंगनी ; LiCl - गुलाबी

ऋण आयन की कमी

2. धनायन की अधिकता : -

किसी क्रिस्टल जालक के बनते समय अतिरिक्त धनायन अंतराकाशी छिद्रों में प्रवेश कर जाता है तथा उदासीनता बनाए रखने के लिए एक इलेक्ट्रॉन ही आ जाता है जिसे क्रिस्टल में धनायन की अधिकता हो जाती है ।
जैसे : श्वेत ZnO को गर्म करने पर ऑक्सीजन का निष्कासन हो जाता है जिससे क्रिस्टल में Zn+2 की अधिकता हो जाती है एवं यह पीले रंग का दिखाई देता है ।
ZnO → Zn+2 + 1/2 O2 + 2e-
ठंडा होने पर पुन: ऑक्सीजन प्रवेश कर जाती है एवं क्रिस्टल श्वेत हो जाता है ।

 धनायन की अधिकता

2. धातु न्यून दोष :-

1. धनायन की कमी :-

किसी क्रिस्टल के बनते समय एक धनायन जालक बिंदु को छोड़कर क्रिस्टल से निष्कासित हो जाता है तो क्रिस्टल में धनायन की कमी हो जाती है आवेश की उदासीनता बनाए रखने के लिए अन्य धनायन अपनी ऑक्सीजन अवस्था में वृद्धि कर लेता हैं ।
जैसे :- VO , FeO , MnO

धातु न्यून दोष


ठोसो में अपूर्णता से सम्बंधित प्रश्नोत्तर :-

F केंद्र किसे कहते हैं ?

किसी आयनिक क्रिस्टल से एक ऋण आयन का निष्कासन हो जाता है तो उस स्थान पर इलेक्ट्रॉन प्रवेश कर जाता है । इस अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त जालक बिंदु को F - केंद्र कहते हैं । जिसे लैटिन शब्द फैरवे से लिया गया है । फैरवे का अर्थ रंग प्रदर्शित करना होता है ।

बिंदु दोष कितने प्रकार के होते हैं ?

किसी क्रिस्टल में अवयवी कण जालक बिंदुओं में उपस्थित रहते हैं
अतः किसी आदर्श क्रिस्टल के अवयवी कणों की व्यवस्था में उत्पन्न विचलन या अपूर्णताएं बिंदु दोष कहलाती है ।
बिंदु दोष तीन प्रकार का होता है -
(A) स्टाइकियोमीट्रिक दोष ( आंतर दोष )
(B) अशुद्ध दोष
(C) नॉन स्टाइकियोमीट्रिक दोष

रिक्तिका दोष क्या है ?

रिक्तिका दोष :- जब किसी क्रिस्टल के जालक बिंदुओ से अवयवी कण निष्कासित हो जाते हैं तो जालक बिंदु रिक्त हो जाते हैं अर्थात् रिक्तिका बन जाती है ।
इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व में कमी हो जाती है ।

धातु न्यूनता दोष क्या है ?

कई ऐसे ठोस हैं जिन्हें स्टॉइकियोमीट्री संघटन में बनाना कठिन होता है एवं इसमें समान्य अनुपात की तुलना में धातु की मात्रा कम होती है। अत: धातु के क्रिस्टल के ऐसे दोष जिसमें धातु का स्टॉइकियोमीट्री अनुपात की तुलना में धातु की मात्रा कम होती है, धातु न्यूनता दोष कहलाता है।

शॉटकी एवं फ्रेंकल दोषों में अंतर बताइए ?

No. शॉटकी दोषफ्रेंकल दोष
1.इस दोष में कुछ आयन जालक बिंदुओं (lattice points) से गायब हो जाते हैं।इस दोष में कुछ आयन जालक बिंदु को छोड़कर अंतराकाशी स्थान (Interstitial space) पर चले जाते हैं।
2.द्विवैधुतांक (dielectric constant) में अंतर नहीं आता।इस दोष में द्विवैधुतांक में वृद्धि हो जाती है।
3.क्रिस्टल का घनत्व (density) कम हो जाता है।क्रिस्टल का घनत्व अपवर्तित (density unchanged) रहता है।
4.उच्च समन्वय अंक वाले क्रिस्टलो में पाया जाता है तथा क्रिस्टल में धनायन व ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं। उदाहरणार्थ- NaCl, CsCl आदि।निम्न समन्वय अंक वाले क्रिस्टलो में पाया जाता है तथा धनायन (positive) का आकार ऋणायन (negative) से कम होता है।

जालक दोष क्या है ?

उपरोक्त बताइए गये सभी दोष जालक के अन्दर ही आते है

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