साइक्लोट्रॉन का सिद्धांत, संरचना एवं क्रियाविधि | PDF Download |

साइक्लोट्रॉन :-

साइक्लोट्रॉन एक ऐसी विद्युत चुंबकीय युक्ति है जिसकी सहायता से भारी और धनावेशित कणों को उच्च ऊर्जा द्वारा त्वरित किया जाता है, इन त्वरित कणों का उपयोग नाभिकीय भौतिकी में किया जाता है ।

Note :- भारी धनावेशित कण के रूप में प्रोट्रोन , डयूट्रॉन एवं अल्फा कण का उपयोग किया जाता है

साइक्लोट्रॉन का सिद्धांत :-

जब किसी भारी धन आवेशित कण को प्रत्यावर्ती विभव क्षेत्र से बार बार गुजारा जाता है तो प्रत्येक बार आवेश को qv ऊर्जा प्राप्त होती है । इस गतिशील आवेश पर एक लंबवत चुंबकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है जो आवेशित कण को वृत्ताकार पथ में घूमाता है और बार-बार प्रत्यावर्ती विभव क्षेत्र में से गुजरने के लिए बाध्य करता है जब धन आवेशित कण की ऊर्जा बहुत अधिक हो जाती है तो इसे साइक्लोट्रॉन से बाहर निकाल लिया जाता है ।

साइक्लोट्रॉन की संरचना :-

साइक्लोट्रॉन का सिद्धांत, संरचना एवं क्रियाविधि

साइक्लोट्रॉन में D-आकार की धातु की दो खोखली प्लेटें D1और D2 क्षेत्रफल में इस प्रकार रखी जाती है कि इनके व्यास एक दूसरे के समांतर रहे । अब D1और D2 प्लेटों को 104 वोल्ट के प्रत्यावर्ती विभव स्त्रोत से जोड़ दिया जाता है जिसकी आवृति 107 Hz होती है और इस संपूर्ण व्यवस्था को स्टील के एक बॉक्स में रख दिया जाता है , यहां 10-6 mm का निर्वात उत्पन्न किया जाता है । अब इस स्टील के बॉक्स को दो चुंबकीय ध्रुव N व S के मध्य इस प्रकार रखा जाता है कि D1और D2 प्लेटों के लंबवत नीचे की ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है ।

साइक्लोट्रॉन की क्रियाविधि :-

अब D1और D2 प्लेट के बीच एक धनावेश q उत्पन्न किया जाता है । माना प्रारम्भ में D1 और D2 प्लेटो की दूरी धुवताएं क्रमशः ऋणात्मक और धनात्मक है अतः आवेश qv ऊर्जा ग्रहण करके D1 प्लेट में प्रवेश करता है जहां इसकी गति लंबवत चुंबकीय क्षेत्र में होती है । अतः D1 प्लेट में इसका पथ वृत्ताकार हो जाता है अब जैसे ही आवेश D1 प्लेट से खाली स्थान में आता है तो D1 और D2 प्लेटों की धुवताएं क्रमशः परिवर्तित हो जाती है अब आवेश qv ऊर्जा ग्रहण करके D2 प्लेट में प्रवेश करता है ।
चूंकि आवेश का वेग पहले से अधिक होता है इसलिए D2 प्लेट में इस आवेश की वृतीय पथ की त्रिज्या बढ़ जाती है और यही क्रम लगातार चलता रहता है । जब आवेश की त्रिज्या साइक्लोट्रॉन की त्रिज्या के बराबर हो जाती है तो विच्छेपक प्लेटों की सहायता से इस आवेश को साइक्लोट्रॉन से बाहर निकाल लिया जाता है ।

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✹ साइक्लोट्रॉन में अनुनाद की अवस्था :-

साइक्लोट्रॉन की आवृत्ति = प्रत्यावृर्ति विभव स्त्रोत की आवृर्ती
Vc = Va

( 1 ) साइक्लोट्रॉन की त्रिज्या :-

qvB = mv2

r =
mv qB

r ∝ v


( 2 ) अर्धवृत्त को पूरा करने में लगा समय -

T/2 = πr/v
T = 2πr/v
T = /v xmv/qB
T = 2πm/qB


( 3 ) आवर्ति :-

1/T = qB/2πm


( 4 ) कोणीय आवर्ति :-

w = 2πv
w = 2π x qB/2πm
w = qB/m

( 5 ) गतिज ऊर्जा :-

K.E. =
1 2
mv 2
K.E. = 1 / 2 m {
qBr m
} 2
K.E. =
q2B2r2 2m

Note :- साइक्लोट्रॉन में निर्वात इसलिए रखा जाता है ताकि त्वरित धनावेशित कण गैसो के अणुओं से टकराकर अपनी ऊर्जा ना खोये ।

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