अलंकार की परिभाषा , भेद / प्रकार तथा 50+ उदाहरण | PDF Download |

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अलंकार की परिभाषा :-

अलंकार शब्द का सामान्य अर्थ "आभूषण" है |
जिस प्रकार शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए आभूषण धारण किए जाते हैं , उसी प्रकार काव्य की शोभा - वृद्धि के लिए प्रयुक्त तत्व अलंकार कहे जाते है |

अलंकार के प्रकार / भेद :-

अलंकार के मुख्यत: दो भेद है जो निम्न प्रकार है _
(क) शब्दालंकार
(ख) अर्थालंकार

(क) शब्दालंकार :-

" काव्य में शब्दों के प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न हो " |

शब्दालंकार के भेद :-

शब्दालंकार के मुख्यत: 3 भेद है जिनका उदाहरण सहित वर्णन निम्न प्रकार है -

(A) अनुप्रास अलंकार :-

" वर्णों की आवृति एक से अधिक बार हो " |
उदाहरण :-
(1) भगवान ! भक्तों की भयंकर भूरि भीति भगाईये |
(2) सिसिर मैं ससि कौं सरूप पावै सविताऊ |
(3) मधुर - मधुर मेरे दीपक जल |
(4) निरपख होइ के हरि भजै , सोई संत सुजान |
(5) बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन |
(6) मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन |
(7) या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी |
(8) उड़ - उड़ वृतों से वृतों के वृत्तों पर |
(9) हँसमुख हरियाली हिम आतप |
(10) ऊँचे कुल का जनमिया , जे करनी ऊँच न होइ | सुबरन कलस सुरा भरा , साधू निंदा सोइ |
(11) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर बारौं |
(12) मखमल की कोमल हरियाली |

(B) यमक अलंकार : -

" शब्दों की आवृति हो पर अर्थ भिन्न - भिन्न हो "|
उदाहरण :-
(13) काली घटा का घमण्ड घटा , नभ - मण्डल तारक - वृन्द खिले |
(14) तीन बेर खाती थीं , वे तीन बेर खाती हैं |
(15) कनक - कनक ते सौगुनी , मादकता अधिकाय |
(16) काली तू , रजनी भी काली , शासन की करनी भी काली |
(17) मेरी काल कोठरी काली , शासन की करनी भी काली |

(C) श्लेष अलंकार :-

" एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ प्रकट होकर चमत्कार की अनुभूति कराते हैं " |
उदाहरण :-
(18) बलिहारी नृप कूप की , गुन बिन बूँद न देई |
(19) सुबरन कौ ढूँढत फिरै , कवि , कामी अरु चोर |
(20) हाथ पीले कर लिये हैं |

(ख) अर्थालंकार :-

" काव्य में अर्थ के कारण चमत्कार उत्पन्न हो "|

अर्थालंकार के भेद :-

अर्थालंकार के मुख्यत: 5 भेद है जिनका उदाहरण सहित वर्णन निम्न प्रकार है _

(A) उपमा अलंकार :-

किसी वस्तु की समानता किसी दूसरी श्रेष्ठ ( प्रसिद्ध ) वस्तु से की जाए "|
उदाहरण :-
(21) विदग्ध होके कण धूलि - राशि का , तपे हुए लौह - कणों समान था |
(22) पीपर पात सरिस मन डोला |
(23) सिंधु - सा विस्तृत और अथाह , एक निर्वारित का उत्साह |
(24) स्वान रूप संसार है , भूँकन दे झख मारि |
(25) सुख से अलसाये - से सोये |
(26) तारक स्वप्नों में - से खोये |
(27) मरकत डिब्बे - सा खुला ग्राम |
(28) एक बीते के बराबर |
(29) एक चाँदी का बड़ा - सा गोल खंभा |
(30) मखमली पेटियों सी लटकी छीमियाँ छिपाए बीज लड़ी |
(31) चाँदी की सी उजली जाली |
(32) रोमांचित - सी लगती वसुधा |

(B) रूपक अलंकार :-

" उपमेय और उपमान में एकरूपता दिखाकर दोनों में अभेद स्थापित किया जाए "|
उदाहरण :-
(33) अम्बर - पनघट में डुबो रही , तारा - घट उषा - नागरी |
(34) हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ , सहज दुलीचा डारि |
(35) खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआं |
(36) प्राणों का आसव किसमें भर दूँ |

(C) उत्प्रेक्षा अलंकार : -

" उपमेय में किसी उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए "|
उदाहरण :-
(37) लट - लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मदहिं पिए |
(38) दादुर धुनि चहुँ ओर सुहाई , वेद पढ़त जनु बटु समुदाई |
(39) फूले फिरते हों फूल स्वयं उड़ - उड़ वृंतों से वृंतों पर |
(40) फिरती है रंग - रंग की तितली रंग - रंग के फूलों पर सुन्दर |

(D) अतिशयोक्ति अलंकार : -

" किसी कथन को बढ़ा - चढ़ाकर कहा जाए जिससे वह असामान्य प्रतीत हो "|
उदाहरण :-
(41) हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग , लंका पूरी जल गई गए निसाचर भाग |
(42) रस्सी कच्चे धागे की , खींच रही मैं नाव | ( रुपकातिशयोक्ति अलंकार )
(43) खुलेगी साँकल बंद द्वार की | ( रुपकातिशयोक्ति अलंकार )
(44) आई सीधी राह से गई न सीधी राह | सुसुम सेतु पर खड़ी थी , बीत गया दिन आह | ( अन्योक्ति अलंकार )
(45) मानसरोवर सुभर जल , हंसा केलि कराहीं मुकता फल मुकता चुगैं , अब उडि अनत न जाहिं |

(E) मानवीकरण अलंकार :-

" जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो "|
उदाहरण :-
(46) हँसमुख हरियाली हिम आतप सुख से अलसाए - से सोए |
(47) यह हरा ठिगना चना , बाँधे मुरैठा शीश पर |
(48) देखता हूँ मैं स्वयंवर हो रहा है |
(49) हैं कई पत्थर किनारे पी रहे चुपचाप पानी |
(50) लो हरित धरा से झाँक रही नीलम की कलि , तीसी नीली |
(51) कह रही है , जो छुए यह दूँ हृदय का दान उसको |

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