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✻ बल,बलों के प्रकार,अभिकेंद्रीय बल एवं अपकेंद्रीय बल,बल आवेग,घर्षण,गुरुत्वाकर्षण एवं गुरुत्व,द्रव्यमान तथा भार,विभिन्न स्थानों पर एक ही वस्तु का भार,केप्लर के ग्रहों की गति से संबंधित नियम,उपग्रह का अध्धयन

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बल :-

वह बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की विरामावस्था या सरल रेखा में एक समान गति की अवस्था को परिवर्तित कर सकता है । उदाहरण के लिए, खेल मैदान में स्थिर रखी हुई फुटबॉल को पैर से किक लगाकर ( अर्थात बल लगाकर ) गतिशील बनाया जा सकता है दूर से तेजी से आती हुई फुटबॉल को हाथ से पकड़ कर ( बल लगाकर ) रोका जा सकता है , जिससे उसकी गति शून्य हो जाए ।
बल लगाकर किसी वस्तु की आकृति और आकार भी बदले जा सकते हैं ,
जैसे :- टमाटर को हथेलियों के बीच जोर से दबाने पर वह पिचक जाता है इस प्रकार इसकी आकृति एवं आकार दोनों बदल जाते हैं ।
बल एक सदिश राशि है ।
बल का मात्रक "न्यूटन" है तथा यह उस बल के बराबर है जो 1 किलोग्राम द्रव्यमान की वस्तु पर कार्य करके उसमें 1 मीटर / सेकंड 2 का त्वरण उत्पन्न कर दें ।
1 न्यूटन 10 5 डाइन
जहां डाइन बल का C.G.S मात्रक है M.K.S पद्धति में बल का मात्रक किग्रा. भार है ।
1 किलोग्राम = 9.8 न्यूटन
1 ग्राम भार = 980 डाइन

✹ बलों के प्रकार ( Types of forces )

बल मुख्यतया चार प्रकार के होते हैं :-
1. गुरुत्वाकर्षण बल ।
2. विद्युत चुंबकीय पर ।
3. दुर्बल या क्षीण बल ।
4. प्रबल बल ।

1. गुरुत्वाकर्षण बल ( Gravitational Force ) :-

जो बल हमें पृथ्वी की ओर खींचे रखता है इस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं पृथ्वी, प्रत्येक वस्तु को आकर्षित करती है यह तो सर्ववदित है वास्तव में किन्ही 2 वस्तुओं के मध्य चाहे वे एक ही मेज पर ही क्यों ना रखे हो, परस्पर गुरुत्वाकर्षण कार्यरत होता है इस गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरुप चंद्रमा , पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है तथा पृथ्वी , सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ।

2. विद्युत चुंबकीय बल ( Electromagnetic Force ) :-

यह बल भी दो प्रकार का होता है :
A. स्थिर विद्युत बल
B. चुंबकीय बल
A. स्थिर विद्युत बल :- दो स्थिर बिंदु आवेशों के बीच लगने वाला बल , स्थिर विद्युत बल कहलाता है ।
B. चुंबकीय बल :- दो चुंबकीय ध्रुवो के बीच लगने वाला बल चुंबकीय बल कहलाता है

3. दुर्बल या क्षीण बल ( Weak Force ) :-

जिन बलों का परिमाण, प्रबल बल का लगभग 10 - 13 गुना होता है और इनके द्वारा संचालित क्षय प्रक्रियायें बहुत धीमी होती है दुर्बल बल कहलाते हैं । यह बल, W बोसान नामक कण के आदान-प्रदान द्वारा अपना प्रभाव दिखाते हैं यह अत्यंत लघु परास वाला बल है ।

4. प्रबल बल ( Strong Force ) :-

नाभिक के अंदर प्रोटोन वन्यूटन के न्यूट्रॉन के बीच में लगने वाले बल को प्रबल बल कहते हैं ।

✹ अभिकेंद्रीय बल एवं अपकेंद्रीय बल ( Centripetal Force and Centrifugal Force ) :-

अभिकेंद्रीय बल ( Centripetal Force ) :-

जब किसी वस्तु या कण को एक स्थिर अक्ष के चारों ओर घुमाया जाता है तो उसमें केंद्र की ओर एक बल लगता है, जिसे अभिकेंद्रीय बल कहते हैं ।
दैनिक जीवन में अभिकेंद्रीय बल के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं : -
1. इलेक्ट्रॉन का नाभिक के चारों ओर घूमना ।
2. दही विलोते समय मथनी का वृत्ताकार मार्ग पर घूम कर मक्खन निकालना
3. वृत्ताकार मार्ग पर साइकिल मोड़ते समय साइकिल सवार, साइकिल सहित मार्ग के केंद्र की ओर झुक जाता है ।
4. कीचड़ से बचाव के लिए साइकिल एवं अन्य वाहनों में मडगार्ड का प्रयोग ।
5. पत्थर के टुकड़े को डोरी से बांधकर घुमाने पर डोरी में तनाव का उत्पन्न होना ।
6. किसी मोड़ पर रेल ( कार या मोटर ) के मुड़ते समय पहियों व सड़क के मध्य लगने वाला घर्षण बल ।
7. ग्रहो, उपग्रहों तथा कृत्रिम उपग्रहों का अपनी कक्षा में गति करना ।

अपकेंद्री बल ( Centrifugal Force ) :-

न्यूटन के क्रिया-प्रतिक्रिया नियम के अनुसार , अभिकेंद्री बल के परिमाण के ठीक बराबर , किंतु विपरीत दिशा में एक अन्य काल्पनिक बल ( Fictitious Force)कार्य करता है जिसे अभिकेंद्री बल कहते हैं ।
अभिकेंद्री बल न तो घूमने वाली वस्तु पर ही लगता है तथा न हीं वस्तु के घूमने या न घूमने पर कोई प्रभाव डालता है यह प्रतिक्रिया बल प्रदान करता है ।
दैनिक जीवन में अभिकेंद्री बल के कुछ उदाहरण इस प्रकार है :-
कपड़े धोने की मशीन एवं कपड़े सुखाने की मशीन का कार्य करना , वाहनों में गति मापक ( Speed Governer ) का प्रयोग , मेलों में चर्खियों का घूमना , पत्थर को डोरी से बांधकर घुमाने पर प्रतिक्रिया बल का अंगुली पर लगना , सूर्य के चारों ओर पृथ्वी का चक्कर लगाना आदि ।

✹ बल आवेग ( Momentum of Force ) :-

बल द्वारा किसी पिंड को एक अक्ष के परित: घुमाने की प्रवृत्ति को बल आवेग कहते हैं ।
इसके कुछ उदाहरण है घरों में गेहूं पीसने वाली चक्की में हत्थे को पाट से दूर लगाया जाता है , कुम्हार का चाक आदि ।
आवेग , एक सदिश राशि है जिसका मात्रक न्यूटन सेकंड होता है ।

बल युग्म ( Couple ) :-

किसी वस्तु पर दो बराबर किंतु विपरीत दिशाओं में कार्यरत समानांतर बलों को बल युग्म कहते हैं । इसका सबसे प्रमुख उदाहरण उत्तोलक है । इसके अंतर्गत कैंची , चिमटा , सरौता , संडासी आदि आते है ।

✹ घर्षण ( Friction ) :-

घर्षण का आभास हमें तब होता है, जब हम किसी पथरीले धरातल पर चलते हैं घर्षण हमारे लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि इसके बिना चलती हुई कार या रेलगाड़ी या धरातल पर चल रहे वाहन को अचानक ब्रेक लगा कर रोका नहीं जा सकता । इसके अभाव में हम चल भी नहीं सकते , मोटर कार , स्कूटर आदि वाहन दौड़ाए नहीं जा सकते तथा लकड़ी में कील भी नहीं ठोकी जा सकती हैं
घर्षण बल के उपयोग किस प्रकार है : -
1. घर्षण बल के कारण ही मनुष्य सीधा खड़ा रहता है ।
2. यदि सड़कों पर घर्षण न हो तो पहिए फिसलने लगते हैं 3. यदि पट्टे तथा पुली के बीच घर्षण न हो तो पट्टा मोटर के पहिए को नहीं घुमा सकेगा ।
घर्षण बल न होने पर हम केले के छिलके तथा बरसात में चिकनी सड़क पर फिसल जाते हैं ।

सरल मशीनें :- सरल मशीनें एक ऐसी युक्ति होती है, जो किसी सुविधाजनक बिंदु पर एक बार लगाकर किसी दिशा अथवा कार्य को संपन्न करती है ।

✹ गुरुत्वाकर्षण एवं गुरुत्व ( Gravitation and Gravity ) :-

गुरुत्वाकर्षण वह आकर्षण बल है , जो प्रत्येक 2 वस्तुओं के बीच उनके दर द्रव्यमान के कारण कार्य करता है ।
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के कुछ तीन नियम है :-
1. प्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है ।
2. आकर्षण का बल दोनों वस्तुओं के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है ।
3. आकर्षण का बल दोनों वस्तुओं के बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
जहां F = आकर्षण का बल , m1 तथा m2 क्रमशः दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान है तथा और r दोनों वस्तुओं के बीच की दूरी है । g को सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण कहा जाता है g एक अदिश राशि है इसका मान 6.67 x 10 -11होता है g का मान संपूर्ण ब्रह्मांड में एक सा होता है ।

गुरुत्व ( Gravity ) :-

पृथ्वी के आस- पास की वस्तुओं पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का बल , गुरुत्व कहलाता है हम इसे वस्तु के भारीपन के रूप में अनुभव करते हैं उदाहरण :- कैंची, प्लास, संडासी व झूला आदि ।

✹ द्रव्यमान तथा भार ( Mass and Weight ) :-

वस्तु का द्रव्यमान उसके अंदर पदार्थ की मात्रा को कहते हैं वस्तु का भार उस पर लगने वाले गुरुत्व के बल को कहते हैं ।
भार = द्रव्यमान x गुरूत्वीय त्वरण = M x g = Mg
यदि वस्तु को बिना काटे-छाटे किसी भी स्थान पर ले जाएं , तो उस का द्रव्यमान समान रहता है , जबकि वस्तु का भार विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है ।
पृथ्वी के केंद्र पर या पृथ्वी से बहुत दूर वस्तु का भार नगण्य हो जाता है लेकिन उसका द्रव्यमान यथावत रहता है ।
वस्तु का द्रव्यमान साधारण तुला से मापते हैं परंतु वस्तु का भार कमानीदार तुला से मापा जाता है ।
विमान एक अदिश राशि है जबकि भार सदिश राशि है ।

✹ विभिन्न स्थानों पर एक ही वस्तु का भार ( Weight of a Body in Different Locations ) :-

1. ऊंचाई पर : - अधिक ऊंची जगहों पर गुरुत्वाकर्षण त्वरण का मान कम होता है इसलिए वस्तु का भार घट जाता है
h पर g का मान , gh = g [ 1- 2h/R ]
2. धरती के भीतर :- किसी खान के अंदर वस्तु का भार घटता है क्योंकि वस्तु को आकर्षित करने वाली पृथ्वी का द्रव्यमान घट जाता है
गहराई d व g का मान ,gd = g [ 1- d/r ]
3. पृथ्वी की सतह पर :- पृथ्वी की सतह पर विभिन्न स्थानों में एक ही वस्तु का भार भिन्न - भिन्न होता है ।
इसके दो कारण है :-
1. पृथ्वी का विचित्र आकार । पृथ्वी की आकृति के कारण g का मान , ध्रुवों पर अधिक तथा विषवत रेखा पर सबसे कम होता है ।
2. पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना ।
4. चंद्रमा पर वस्तु का भार :- पृथ्वी पर वस्तु के भार का 1/6
5. अंतरिक्ष में वस्तु का भार : - शून्य ( 0 )

✹ केप्लर के ग्रहों की गति से संबंधित नियम ( Kepler's Laws of Planetary Motion ) :-

प्रत्येक ग्रह , सूर्य के चारों ओर दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य, ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिंदु पर स्थित होता है ।
प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग नियत रहता है इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह, सूर्य के निकट होता है तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है तो उसका वेग कम हो जाता है
सूर्य के चारों ओर ग्रह का चक्र जितने समय में लगता है उसे उसका परिभ्रमण काल कहते हैं परिभ्रमण काल का वर्ग , ग्रह की सूर्य से औसत दूरी के अनुक्रमानुपाती होता है ।

✹ उपग्रह ( Satellite ) :-

किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं उदाहरण के लिए चंद्रमा , पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह हैं । इसके अतिरिक्त मनुष्य ने अनेक कृत्रिम उपग्रह भी आकाश में छोड़े हुए हैं , जो लगातार पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं ।
ऐसा उपग्रह, जो पृथ्वी के अक्ष के लंबवत तल में पश्चिम से पूर्व की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिभ्रमण काल पृथ्वी के परिभ्रमण काल के बराबर होता है भू-तुल्यकाली उपग्रह या भू-स्थाई उपग्रह ( Geostationary Satellite ) कहलाता है ।

इस उपग्रह का मुख्य उपयोग संचार मौसम की जानकारी के लिए किया जाता है अतः ये संचार उपग्रह भी कहलाते हैं ।

पलायन वेग ( Escape Velocity ) :-

पलायन वेग वह न्यूनतम वेग हैं , जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है तथा पृथ्वी पर वापस नहीं आता । इसका मान 11.2 किलोमीटर / सेकंड होता है जो ग्रह जितना बड़ा तथा भारी होगा , उसके लिए कक्षिय गति तथा पलायन वेग उतना ही ज्यादा होगा ।

गुरुत्व केंद्र ( Gravitational Center ) :-

किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र , वह बिंदु है , जहां वस्तु का समस्त भार कार्य करता है । वस्तु चाहे जिस स्थिति में रखी जाए ।

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