उत्तर वैदिक काल की सामाजिक ,राजनीतिक ,आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति ( uttar vaidik kal ) | PDF Download |

उत्तर वैदिक काल की सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति ( uttar vaidik kal ) | PDF Download |

{tocify} $title={Table of Contents}

उत्तर वैदिक काल का इतिहास

  • उत्तर वैदिक काल का समय 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक का माना जाता है।
  • उत्तर वैदिक काल में क्षेत्रगत राज्यों का उदय होने लगा (कबीले आपस में मिलकर राज्यों का निर्माण करने लगे)।
  • तकनीकि दृष्टि से लौह युग की शुरूआत हुई।
  • सबसे पहले लोहे को 800 ई.पू. के आसपास गंगा, यमुना दोआब में अतरंजी खेडा में हासिल किया गया।
  • उत्तरवैदिक काल के वेद अथर्ववेद में लोहे के लिए श्याम अयस एवं कृष्ण अयस जैसे शब्द का प्रयोग किया गया।
  • उत्तर वैदिक काल में वर्णव्यवस्था का उदय हुआ।

उत्तर वैदिक राजनीतिक स्थिति/व्यवस्था :

  • उत्तर वैदिक में कबिलाई ढांचा टूट गया एवं प्रथम बार क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ।
  • उत्तर वैदिक में जन का स्थान जनपद ने ले लिया।
  • उत्तर वैदिक में युद्ध गायों के लिए न होकर क्षेत्र के लिए होने लगा।
  • उत्तर वैदिक में सभा एवं समितियों पर राजाओं, पुरोहितों एवं धनी लोगों का अधिकार हो गया।
  • उत्तर वैदिक में विदथ को समाप्त कर दिया गया।
  • उत्तर वैदिक में स्त्रियों को सभा की सदस्याता से बहिष्कृत कर दिया गया।
  • उत्तर वैदिक में राजा अत्यधिक ताकतवर हो गया एवं राष्ट्र शब्द की उत्पत्ति हुई।
  • उत्तर वैदिक में बलि के अतिरिक्त ‘भाग तथा शुल्क’ दो नए कर लगाये गए।
  • उत्तर वैदिक में राजा की सहायता करने वाले उच्च अधिकारी रत्निन कहलाते थे।
  • उत्तर वैदिक में राजा कोई स्थायी सेना नहीं रखता था।

उत्तरवैदिक सामाजिक स्थिति//व्यवस्था :

उत्तरवैदिक सामाजिक व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म पर आधारित न होकर जन्म आधारित पर हो गया। इस समय लोग स्थायी जीवन जीने लगे। चारों वर्ण – पुरोहित, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र स्पष्टतः स्थापित हो गए। यज्ञ का महत्व बढ़ने लगा और ब्राह्मणें की शक्ति में अपार वृद्धि हुई। ऐतरेय ब्राह्मण में चारों वर्णो के कार्यो का उल्लेख मिलता है। इस काल में तीन आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ एवं वानप्रस्थ की भी स्थापना हुई।

नोट – चौथा आश्रम ‘संन्यास’ महाजनपद काल में जोडा गया था।

जावालोपनिषद में सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है। स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार प्राप्त था। बाल विवाह का प्रचलन नहीं था। विधवा विवाह,नियोग प्रथा के साथ अन्तःजातीय विवाह का प्रचलन था तथा स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आयी।

उत्तरवैदिक आर्थिक स्थिति//व्यवस्था :

  • उत्तर वैदिक काल में मुख्य व्यवसाय कृषि बन गया (कारण: लोहे की खोज एवं स्थायी जीवन)|
  • उत्तर वैदिक काल में मुख्य फसल धान एवं गेहूं थी।
  • उत्तर वैदिक काल में यजुर्वेद में ब्रीहि (धान), भव (जौ), गोधूम (गेहूं) की चर्चा मिलती है।
  • उत्तर वैदिक काल में कपास का उल्लेख नहीं हुआ। ऊन शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • उत्तरवैदिक सभ्यता भी ग्रामीण ही थी। इसके अंत में हम नगरों का आभास पाते हैं। हस्तिनापुर एवं कौशाम्बी प्रारंभिक नगर थे।
  • उत्तर वैदिक काल में नियमित सिक्के का प्रारंभ अभी नहीं हुआ था।
  • उत्तर वैदिक काल में सामान्य लेन-देन वस्तु विनिमय द्वारा होता था।
  • उत्तर वैदिक काल में निष्क, शतमान, पाद एवं कृष्णल माप की इकाइयां थी।v
  • सर्वप्रथम अथर्ववेद में चांदी का उल्लेख हुआ है।
  • लाल मृदभांड उत्तर वैदिक काल में सर्वाधिक प्रचलित थे।

उत्तरवैदिक धार्मिक स्थिति//व्यवस्था :

  • धर्म का स्वरूप बहुदेववादी तथा उद्देश्य भौतिक सुखों की प्राप्ति था। प्रजापति, विष्णु तथा रूद्र महत्वपूर्ण देवता के रूप में स्थापित हुए।
  • सृजन के देवता प्रजापति का सर्वोच्च स्थान था तथा पूषण सूडों के देवता थे।
  • यज्ञ का महत्व बढ़ा एवं जटिल कर्मकाण्डों का सम्मिलित आवेश हुआ।
  • मृत्यु की चर्चा सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में मिलती है।
  • सर्वप्रथम मोक्ष की चर्चा उपनिषद में मिलती है।
  • पुनर्जन्म की अवधारणा सर्वप्रथम वृहदारण्यक उपनिषद में मिलती है।

आश्रम स्थिति//व्यवस्था :

  • आश्रम व्यवस्था की स्थापना उत्तरवैदिक काल में हुई।
  • छांदोग्य उपनिषद में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख है।
  • सर्वप्रथम जाबालोपनिषद में 4 आश्रम बताए गए हैं।

नोट – उत्तरवैदिक काल में केवल 3 आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ व वानप्रस्थ (संन्यास) महाजनपद काल में स्थापित किया गया।

आश्रम आयु कार्य पुरूषार्थ
ब्रह्मचर्य आश्रम 0-25 वर्ष ज्ञान प्राप्ति धर्म
गृहस्थ आश्रम 26-50 वर्ष सांसारिक जीवन अर्थ व काम
वानप्रस्थ आश्रम 51-75 वर्ष मनन/चिंतन/ध्यान मोक्ष
सन्यास आश्रम 76-100 वर्ष मोक्ष हेतु तपस्या मोक्ष

नोट – गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि इस आश्रम में मनुष्य त्रिवर्ग (पुरूषार्थो) – धर्म,अर्थ एवं काम का एक साथ उपयोग करता है।

इसी आश्रम में त्रि-ऋण से निवृत होता है।

  • ऋषि ऋण – ग्रंथों का अध्ययन
  • पितृ ऋण – पुत्र प्राप्ति
  • देव ऋण – यज्ञ करना

नोट – शूद्र मात्र गृहस्थ आश्रम को ही अपना सकते थे अन्य आश्रमों को नहीं।

वर्ण व्यवस्था :

  • ऋग्वेद के 10 वें मण्डल में 4 वर्णो का उल्लेख है।
  • ऋग्वैदिक काल में वर्णो का आधार कर्म था परन्तु उत्तरवैदिक काल में जन्मजात आधारित बना दिया गया।
  • पुरोहित: उत्पत्ति – ब्रह्मा के मुख से, कार्य – धार्मिक अनुष्ठान
  • क्षत्रिय: उत्पत्ति – ब्रह्मा की भुजा से, कार्य – शासक वर्ग/धर्म की रक्ष
  • वैश्य: उत्पत्ति – ब्रह्मा की जघाओं से, कार्य – कृषि/व्यापार/वाणिज्य
  • शूद्र: उत्पत्ति – ब्रह्मा के पैर से, कार्य – सेवा कार्य (अन्य वर्ण के लोगों की सेवा)
  • कर की अदायगी केवल वैश्य करते थे।

नोट – उत्तरवैदिक काल में शुद्रों को गैर आर्य माना जाता था।

विवाहों के प्रकार :

  • समान वर्ण में विवाह (कन्या का मूल्य देकर) - ब्रह्म विवाह
  • पुरोहित के साथ विवाह (दक्षिणा सहित) - दैव विवाह
  • कन्या के पिता को वर एक जोड़ी बैल प्रदान करता था - आर्य विवाह
  • बिना लेन-देन, योग्य वर के साथ विवाह - प्रजापत्य विवाह
  • कन्या को उसके माता-पिता से खरीद कर विवाह - असुर विवाह
  • प्रेम विवाह - गंधर्व विवाह
  • पराजित राजा की पुत्री, बहन या पत्नि से उसकी इच्छा के विरूद्ध विवाह - राक्षस विवाह
  • सोती हुई स्त्री, नशे की हालत में अथवा विश्वासघात द्वारा विवाह - पैशाच विवाह

नोट – ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्य विवाह व प्रजापत्य विवाह ब्राह्मणों के लिए मान्य थे।

गन्धर्व विवाह केवल क्षत्रियों में होता था।
असुर विवाह केवल वैश्य और शूद्रों में होता था।

भारतीय दर्शन :

दर्शन आधार ग्रन्थ प्रतिपादक
सांख्य दर्शन सांख्य सूत्र कपिल मुनि
योग दर्शन योग सूत्र पतंजलि
न्याय दर्शन न्याय सूत्र गौतम
वैशेषिक दर्शन वैशेषिक सूत्र कणाद / उलूक
पूर्व मीमांशा दर्शन पूर्व मीमांशा सूत्र जैमिनी
उत्तर मीमांशा दर्शन ब्रहम सूत्र वेदव्यास / वादरायण


उत्तर वैदिक काल से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोतरी :-

1. उत्तर वैदिक काल का प्रमुख देवता कौन था ?

प्रजापति

2. उत्तर वैदिक काल क्या है ?

यह युग आर्य संस्कृति के विकास और प्रसार , उत्कर्ष और अभ्युदय , मतभेद और ऊहापोह तथा विभिन्नीकरण का युग था। इस काल में नीति, धर्म, दर्शन, आचार-विचार, मत-विश्वास आदि की प्रधान रूपरेखा निश्चित और सुस्पष्ट हो गए।

निष्कर्ष (तर्क) :- हमारे द्वारा लिखे गए इस लेख में उत्तर वैदिक काल से सम्बंधित जानकारी का अध्धयन किया होगा | इस लेख हमारे द्वारा उत्तर वैदिक काल से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी है और हम आशा करते है यह जानकारी आपको बहुत पसंद आई होगी | अगर आपको यह जानकारी पसंद आती है तो नीचे दिए comment बॉक्स में comment करे और हमसे जुड़े रहने के लिए follow ओर telegram channel में जुड़ सकते हो |


उत्तर वैदिक काल PDF Download

Download PDF

Download PDF
980 KB

History Notes

सभी बिषयवार Free PDF यहां से Download करें

एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने