✻ प्राचीन भारत की प्राकृतिक अवस्थाएँ
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प्राचीन भारत की प्राकृतिक अवस्थाएँ :-
विस्तार :-
➥
भारतवर्ष का फैलाव अत्यधिक विस्तृत माना
गया है जिसके कारण इस देश को “वृहत्तर भारत” भी कहा
जाता रहा है. वृहत्तर भारत के विस्तार के “मत्स्यपुराण' में नौ
भेद किये गए हैं, जो समुद्र के बीच में आ जाने के कारण
एक-दूसरे से अलग एवं कठिन है |
➥ प्राचीन भारत के वृहत्तर
स्वरूप के नौ भेद निम्नांकित हैं-
(1) इन्द्रद्वीप
(2) कसेरू
(3) ताम्रपर्णी
(4) गभस्तिमान
(5) नागद्भीप
(6) सौम्य
(7) गन्धर्व
(8) वारूण
(9) सागर से घिरा भारत
➥ वास्तविक अर्थों में इसे भारत की औपनिवेशिक एवं
सांस्कृतिक सीमा माना जाना ही उपयुक्त होगा, क्योंकि
अक्सर भारतवर्ष का फैलाव हिमालय और समुद्र का मध्य
भाग ही माना जाता रहा है |
भौगोलिक स्थिति :-
➥ एशिया महाद्वीप के दक्षिण में हिन्द
महासागर के अन्तर्गत आने वाले प्रायद्वीपों में मध्य में त्रिभुज
के आकार में अवस्थित 'भारतवर्ष' है |
➥ भारतवर्ष उत्तरी
गोलार्द्ध में 7° और 37° अक्षांश एवं 62° तथा 98°
देशान्तर के मध्य स्थित है |
➥
कलकत्ता के ऊपरी क्षेत्र से रन-कच्छ तक कर्क रेखा
गुजरती है |
➥ दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध एवं उत्तरी भाग
शीतोष्ण कटिबन्ध में आता है |
➥ भारतवर्ष का क्षेत्रफल यूरोप
से रूस को अलग करने पर शेष के बराबर है. भारतवर्ष की
लम्बाई कश्मीर से लंका तक 2000 मील एवं चौड़ाई भी
काठियावाड़ से असम तक लगभग इतनी ही है |
सीमाएँ :-
➥
भारतवर्ष की उत्तरी सीमा ऊँचा और दुर्गम
महागिरि हिमालय है, जो भारत को एशिया के अन्य देशों से
अलग करता है
➥
भारतवर्ष की पश्चिमोत्तर श्रृंखलाएँ सफेद
कोह, सुलेमान, किरथर दक्षिण-पश्चिम दिशा में जाकर
अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से सिन्धु घाटी को अलग
करती है , इसे पक्की सीमा नहीं कहा जाता |
➥ हिन्दुकुश और
पामीर की श्रृंखलाएँ भारतवर्ष की दृढ़ पश्चिमोत्तर सीमा है |
➥
भारतवर्ष के पूर्वोत्तर में हिमालय की श्रृंखलाएँ दक्षिण की
ओर झुकती हैं जिन्हें पटकोई, नागा, जयन्तिया खासी, गारो,
लुसाई एवं आराकानयोमा के नाम से सम्बोधित की जाती है |
➥
जो चीन, हिन्दचीन और श्याम से भारतवर्ष को अलग करती
हैं |
➥ नीचे के क्षेत्र को हिन्द महासागर की अथाह जलराशि में
तीन तरफ से घेरकर भारतवर्ष की सीमा रेखा निश्चित की
गई है